अधजल गगरी छलकत जाए मुहावरे का अर्थ हैं ( adhajal gagaree chhalakat jae muhaavare ka arth hain )- अज्ञानी पुरुष ही अपने ज्ञान की शेखी बघारते हैं।
जैसे : -
आठवीं फेल कोमल अपनी विद्वत्ता की बड़ी-बड़ी बातें करती है। आखिर करे भी क्यों नहीं, अधजल गगरी छलकत जाए।
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