What is the Kyoto Protocol? / क्या है क्योटो संधि?
(1) It is an agreement among countries to take steps for reducing acid rain / यह अम्लीय वर्षा को कम करने के लिए कदम उठाने के लिए देशों के बीच एक समझौता है
(2) It is an agreement among countries to take steps for planting trees to control pollution / यह प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पेड़ लगाने के लिए कदम उठाने के लिए देशों के बीच एक समझौता है
(3) It is an agreement among countries to start using nuclear energy / यह परमाणु ऊर्जा का उपयोग शुरू करने के लिए देशों के बीच एक समझौता है
(4) It is an agreement among countries to take steps for reducing global warming / यह ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कदम उठाने के लिए देशों के बीच एक समझौता है
(SSC CHSL (10+2) LDC, DEO & PA/SA Exam, 15.11.2015)
Answer / उत्तर :-
(4) It is an agreement among countries to take steps for reducing global warming / यह ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कदम उठाने के लिए देशों के बीच एक समझौता है
Explanation / व्याख्या :-
The Kyoto Protocol is an international treaty, which extends the 1992 United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC) that commits State Parties to reduce greenhouse gases emissions, based on the premise that (a) global warming exists and (b) man-made CO2 emissions have caused it. It aims to fight global warming by reducing greenhouse gas concentrations in the atmosphere. The treaty was negotiated in December 1997 at the city of Kyoto, Japan and came into force on February 16, 2005.
The Kyoto Protocol is a compendium of the United Nations Framework Convention on Climate Change/UNECCC or FCCC. It is an international environmental treaty that was created at the United Nations Convention on Climate Change. The purpose of this protocol is ‘to keep the density of greenhouse gas in the atmosphere at such an extent that there is no harmful obstruction in the flow system by human life.’ According to the Kyoto Protocol, four greenhouse gases (carbon dioxide, methane, nitrous oxide, sulfur hexafluoride) and two group gases (hydrofluorocarbons and perfluorocarbons) generated by Annex 1 (industrialized) nations are legally required to cut, in addition to All other member states are bound by general adoption. 183 communities have ratified this protocol. It was adopted on 11 December 1997 in Kyoto, Japan and implemented on 16 February 2005. Under Kyoto, industrialized countries agreed to reduce their collective GHG emissions by 5.2% compared to the year 1990. The cuts are subject to national limits of 8% for the European Union, 7% for the United States, 6% for Japan, and 0% for Russia. The treaty aims to provide Australia with 8% and Iceland 10% of GHG emissions. Allows enhancement.
Kyoto has flexible methods such as emissions trading, the Clean Development Mechanism, and joint implementation that allows several countries to meet their greenhouse gas (GHG) emissions targets by purchasing GHG emission reduction credits. gives. This credit can be purchased from other Anax 1 countries and from other Anax 1 countries through a meaningful transaction or through an emissions reduction project. What this actually means is that there are no GHG emissions restrictions for non-annexation economies, but there is a financial incentive for countries to sell ‘carbon credits’ to several countries as emissions reduction projects increase. It encourages positional upgrades. In addition, this flexible approach allows countries with low GHG emissions and high environmental standards to buy carbon credits from the world market instead of reducing domestic emissions. While non-annexing entities seek to maximize the value of carbon credits generated from their domestic greenhouse gas projects, the same annexation nations seek to obtain carbon credits cheaply.
All of the treaty countries in this annex have established national authorities to manage their greenhouse gas portfolios, including Japan, Canada, Italy, the Netherlands, Germany, France, Spain and other countries. has actively raised carbon funds. This resulted in support for the Multilateral Carbon Fund, enabling them to purchase carbon credits from non-many countries. Keeping this objective in front, all these countries, while aggregating their utility, power, oil and gas and chemical resources, obtained greenhouse gas bills cheaply. Virtually all non-annexing countries have adopted the CDM, especially the CDM, to manage the Kyoto process. A national authority has been established to manage the process. cdm The process determines which GHG. The project is to be proposed to the Executing Committee.
क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जो 1992 के संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) का विस्तार करती है, जो इस आधार पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए राज्यों को प्रतिबद्ध करती है कि (ए) ग्लोबल वार्मिंग मौजूद है और (बी) मानव निर्मित CO2 उत्सर्जन इसका कारण बना है। इसका उद्देश्य वातावरण में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को कम करके ग्लोबल वार्मिंग से लड़ना है। इस संधि पर दिसंबर 1997 में जापान के क्योटो शहर में बातचीत हुई थी और यह 16 फरवरी, 2005 को लागू हुई थी।
क्योटो प्रोटोकॉल आवहवा परिवर्तन पर हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रारूप सम्मलेन (United nations Framework Convention on Climate Change/UNECCC or FCCC) का एक संग्लेख है।यह एक अनतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है जो संकुक्त राष्ट्र के संधि सम्मलेन में रचा गया था। इस प्रोटोकॉल का उद्देश है ‘वायुमंडल में ग्रीनहॉउस गैस का घनात्वा ऐसे मात्रा पे स्थितिशील रखना जिससे मनुष्य जीवन द्वारा आवहवा प्रणाली में कोई हानिकारक रुकावट न पड़े।’ क्योटो प्रोटोकोल के अनुसार ‘अन्नेक्स 1’ (औद्योगिक) राष्ट्रों द्वारा उत्पन्न चार ग्रीनहॉउस गैस (कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर हेक्साफ्लोरैद) व दो समूह के गैस (ह्य्द्रोफ़्लुरोकर्बोन और पेर्फ़्लुरोकर्बोन)को कानूनी तौर पे कटौती करना आवश्यक है, इसके अलावा बाकि सारे सदस्य राष्ट्र साधारण अंगीकार में बंधे है। 183 समुदाय ने इस प्रोटोकोल की पुष्टि की है। इसे 11 दिसम्बर 1997 में जापान के क्योटो में ग्रहण किया गया और 16 फरवरी 2005 में अमल किया गया। क्योटो के तहत औद्योगिक देश वर्ष 1990 की तुलना में उनके सामूहिक GHG उत्सर्जन को 5.2 % कम करने पर सहमत हुए। कटौती के राष्ट्रीय सीमाओं को अनुसार यूरोपीय संघ के लिए 8% संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 7%, जापान के लिए 6%, और रूस के लिए 0% तक का है लक्ष्य है संधि आस्ट्रेलिया को 8% और आइसलैंड को 10% GHG उत्सर्जन की बढ़ौती की अनुमति देता है।
क्योटो के अर्न्तगत कुछ लचीले तरीके है जैसे उत्सर्जन व्यापार, स्वच्छ विकास तंत्र और संयुक्त कार्यान्वयन जो की अनेक्स 1 के राष्ट्रों को जी.एइच.जी (GHG) उत्सर्जन कटौती क्रेडिट क्रय द्वारा अपने ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने की आज्ञा देती है। यह क्रेडिट, दुसरे अनेक्स 1 देशों से और अधिक छुट पाने वाले अनेक्स 1 देशो से अर्थकारी लेनदेन द्वारा अथवा उत्सर्जन घटाने वाले परियोजना के माध्यम से खरीदी जा सकती है। इसका वास्तव अर्थ यह है कि गैर अनुलग्नक अर्थव्यवस्थाओं के लिए कोई GHG उत्सर्जन प्रतिबंध नही है, बल्कि उन देशों के लिए इस बात की वित्तीय प्रोत्साहन है की उत्सर्जन घटने वाले परियोजनाएं बढ़ने से वे अनेक्स 1 राष्ट्रों को ‘कार्बन क्रेडिट’ बेच सकते हैं। यह स्थितिशील उन्नयन को प्रोत्साहन देती है। इसके अलावा यह लचीले कार्यविधि इस बात की भी अनुमति देती है की जिन अनेक्स 1 देशों की GHG उत्सर्जन कम है और पर्यावरण के प्रचलित मापदंड उच्च है, वह देश घरेलु उत्सर्जन कम करने के बजाय विश्व बाज़ार से कार्बन क्रेडिट खरीद सकते है। जबकि गैर अनुलग्नक संस्थाओं उनके घरेलू ग्रीनहाउस गैस परियोजनाओं से उत्पन्न कार्बन क्रेडिट का मूल्य अधिकतम करना चाहते है, वही अनुलग्नक राष्ट्र सस्ते में कार्बन क्रेडिट प्राप्त करना चाहते हैं।
इस अनुलग्नक के सारे संधि-बंध देशों ने अपने ग्रीनहाउस गैस के पोर्टफोलियो का प्रबंधन करने के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण की स्थापना की है, जापान, तथ्य वांछित जापान, कनाडा, तथ्य वांछित इटली सहित नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रांस, तथ्य वांछित स्पेन और दूसरों देशों ने सक्रिय रूप से कार्बन कोष बढ़ा दिए हैं। इसके फलस्वरूप बहुपक्षीय कार्बन कोष अव्हिप्राय को समर्थन मिली, के वे नॉन अनेक्स देशों से कार्बन क्रेडिट खरीद सके। इस उद्देश्य को सामने रखते हुए यह सारे देश घनिष्ठ रूप में अपने उपयोगिता, शक्ति, तेल और गैस एवं रासायनिक जुट को एकत्रित करते हुए सस्ते में ग्रीनहाउस गैस सनद प्राप्त किए। वस्तुतः सभी गैर अनुलग्नक देशों ने क्योटो प्रक्रिया का प्रबंधन करने के लिए, विशेष कर सी.डी.एम. प्रक्रिया को प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण की स्थापना की है। सी.डी.एम. प्रक्रिया यह निर्धारित करती है, किस जी.एच.जी. परियोजना को निर्वाही समिति में प्रस्तावित करना है।
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