Why is Carbon Monoxide a pollutant ? / कार्बन मोनोऑक्साइड एक प्रदूषक क्यों है?
(1) Reacts with hemoglobin / हीमोग्लोबिन के साथ प्रतिक्रिया करता है
(2) Makes nervous system inactive / तंत्रिका तंत्र को निष्क्रिय बनाता है
(3) It reacts with Oxygen / यह ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करता है
(4) It inhibits glycolysis / यह ग्लाइकोलाइसिस को रोकता है
(SSC CGL Tier-I (CBE) Exam.28.08.2016)
Answer / उत्तर :-
(1) Reacts with hemoglobin / हीमोग्लोबिन के साथ प्रतिक्रिया करता है
Explanation / व्याख्या :-
कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) को प्रदूषक माना जाता है क्योंकि यह हेमोग्लोबिक जानवरों (मनुष्यों सहित) के लिए विषैला होता है जब लगभग 35 पीपीएम से अधिक सांद्रता में इसका सामना करना पड़ता है। यह हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन का उत्पादन करता है, जो हीमोग्लोबिन में जगह लेता है जो सामान्य रूप से ऑक्सीजन ले जाता है, लेकिन शारीरिक ऊतकों को ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए अप्रभावी होता है। 50% कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन के स्तर के परिणामस्वरूप दौरे, कोमा और मृत्यु हो सकती है।
कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) एक जहरीली गैस है। यह गैसोलीन, केरोसिन, तेल, प्रोपेन, कोयला, या लकड़ी के जलने से उत्पन्न होती है।
कार्बन मोनोऑक्साइड लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। कार्बन मोनोऑक्साइड की अधिकता वाले वातावरण में सांस लेने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती हैं। इसके कारण महत्वपूर्ण अंग, जैसे कि मस्तिष्क, तंत्रिका ऊतक और हृदय, को ठीक से काम करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। इसके सबसे आम लक्षण सिरदर्द, चक्कर आना, कमजोरी, पेट खराब होना, उल्टी, सीने में दर्द और भ्रम होना है।
कार्बन-मोनोऑक्साइड (सीओ) को एथिलीन में बदलने से वातावरण में प्रदूषण फैलने से रोका जा सकता है। इस तकनीक से सीओ को एथिलीन में बदलने के लिए बहुत कम ऊर्जा लगती है। एथिलीन आमतौर पर पेट्रोलियम रिफाइनरियों से प्राप्त नेफ्था की भाप के द्वारा निर्मित होता है। इस प्रक्रिया मे अधिक समय लग जाता है, जिसमें हाइड्रोकार्बन को 800 से 900 डिग्री सेल्सियस के ताप पर छोटी श्रृंखलाओं में विभाजित किया जाता है। इस शोध को जर्मन केमिकल सोसायटी के जर्नल अंगवंदते कैमी में प्रकाशित किया गया है।
फिशर-ट्रोप्स प्रक्रिया का उपयोग एथिलीन सहित हाइड्रोकार्बन के मिश्रण में गैस को परिवर्तित करने के लिए किया जा सकता है। इस विधि में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है, इसे 200 से 250 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है, 5 से 50 बार गैस पर दबाव बढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया में बहुमूल्य हाइड्रोजन की खपत बहुत अधिक होती है। इस विधि में एथिलीन को अलग करने की प्रक्रिया जटिल है, और इससे 30-50 फीसदी सीओ2 का उत्पादन भी हो जाता है, जो एक अनचाहा उत्सर्जन है।
चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ साइंसेज, डालियान इंस्टीट्यूट ऑफ़ केमिकल फ़िज़िक्स के शोधकर्ताओं ने अब एथिलीन के उत्पादन के लिए इलेक्ट्रोकैटलिटिक प्रक्रिया के तहत नई तकनीक इजाद की है। इस विधि में, कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) को उत्प्रेरक पर डाला जाता है, साथ ही इस पर विद्युत प्रवाह का उपयोग किया जाता है।
सीओ को एथिलीन में बदलने के लिए, शोधकर्ताओं द्वारा इलेक्ट्रोड पर गैस डाली गई। इसमें उत्प्रेरक सक्रिय रूप में कार्य करता है। यह इलेक्ट्रोड में सीओ के मिश्रण को बढ़ाता है और कार्बन परमाणुओं के बीच इक युग्मन (कपलिंग) बढ़ाता है। इस प्रतिक्रिया के उत्पाद, इथेनॉल, एन-प्रोपेनोल और एसिटिक एसिड, जैसे तरल पदार्थ होते हैं, जिसमें से गैसीय एथिलीन को आसानी से अलग किया जा सकता है।
इस तरह शोधकर्ताओं ने बिना सीओ2 उत्सर्जन के, बहुत कम ऊर्जा के उपयोग से कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) को एथिलीन में बदल दिया।
Carbon monoxide (CO) is considered a pollutant since it is toxic to hemoglobic animals (including humans) when encountered in concentrations above about 35 ppm. It combines with hemoglobin to produce carboxyhemoglobin, which usurps the space in hemoglobin that normally carries oxygen, but is ineffective for delivering oxygen to bodily tissues. A level of 50% carboxyhemoglobin may result in seizure, coma, and fatality.
Carbon monoxide (CO) is a poisonous gas. It is produced by the burning of gasoline, kerosene, oil, propane, coal, or wood.
Carbon monoxide harms people’s health. Breathing in an environment high in carbon monoxide reduces the amount of oxygen in the body. As a result, vital organs, such as the brain, nervous tissue, and heart, do not receive enough oxygen to function properly. The most common symptoms are headache, dizziness, weakness, upset stomach, vomiting, chest pain and confusion.
By converting carbon-monoxide (CO) into ethylene, pollution can be prevented from spreading in the atmosphere. It takes very little energy to convert CO into ethylene with this technology. Ethylene is usually produced by steaming naphtha from petroleum refineries. This process is more time consuming, in which hydrocarbons are broken down into smaller chains at temperatures of 800 to 900 °C. The research has been published in the German Chemical Society journal Angavante Chemi.
The Fischer–Tropsch process can be used to convert a gas into a mixture of hydrocarbons, including ethylene. This method takes a lot of energy, it is heated to 200 to 250 ° C, the pressure on the gas is increased from 5 to 50 bar. This process consumes a lot of valuable hydrogen. The process of separating ethylene in this method is complicated, and it also produces 30-50% CO2, an unwanted emission.
Researchers from the Chinese Academy of Sciences, Dalian Institute of Chemical Physics, have now developed a new technique for the production of ethylene under the electrocatalytic process. In this method, carbon monoxide (CO) is poured onto the catalyst, along with the application of an electric current to it.
In order to convert CO into ethylene, a gas was put on the electrodes by the researchers. In this, the catalyst acts in an active form. This increases the mixing of CO at the electrode and increases the coupling between the carbon atoms. The products of this reaction are liquids such as ethanol, n-propanol and acetic acid, from which gaseous ethylene can be easily separated.
In this way the researchers converted carbon monoxide (CO) into ethylene, using very little energy, without CO2 emissions.
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