Which is the instrument of music in which Ustad Amajad Ali Khan has distinguished himself? / उस्ताद अमजद अली खान ने किस संगीत वाद्ययंत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है?
(1) Sarod / सरोद
(2) Violin / वायलिन
(3) Sitar / सितार
(4) Shehnai / शहनाई
(SSC Combined Matric Level (PRE) Exam. Held on : 21.05.2000)
Answer / उत्तर :-
(1) Sarod / सरोद
Explanation / व्याख्या :-
Amjad Ali Khan is an Indian classical musician who plays the sarod. Khan was born into a musical family and has performed internationally since the 1960s. He was awarded India’s second highest civilian honor, the Padma Vibhushan, in 2001.
Amjad Ali Khan is a famous sarod player who was awarded the Padma Bhushan by the Government of India in 1991 in the field of art. They’re from Delhi.
Amjad Ali Khan was born on 9 October 1945 in Gwalior. Amjad Ali Khan, who was born in the sixth generation of the ‘Seniya Bangash’ gharana of music in Gwalior, inherited music. His father Ustad Hafiz Ali Khan was a distinguished musician in the Gwalior royal court. It was the musicians of this gharana who modified the Iranian folk instrument ‘Rabab’ to suit Indian music and named it ‘Sarod’. He made his first public performance of solo sarod-playing at the age of just twelve. The legendary musician was stunned to hear the unique rhythm and tantrakari on the sarod of a small boy.
अमजद अली खान एक भारतीय शास्त्रीय संगीतकार हैं जो सरोद बजाते हैं। खान का जन्म एक संगीत परिवार में हुआ था और उन्होंने 1960 के दशक से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन किया है। उन्हें 2001 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
अमजद अली खान एक प्रसिद्ध सरोद वादक हैं जिनको भारत सरकार द्वारा सन 1991 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली से हैं।
अमजद अली ख़ाँ का जन्म ग्वालियर में 9 अक्टूबर 1945 को हुआ था। ग्वालियर में संगीत के ‘सेनिया बंगश’ घराने की छठी पीढ़ी में जन्म लेने वाले अमजद अली खाँ को संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। इनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ग्वालियर राज-दरबार में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे। इस घराने के संगीतज्ञों ने ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारतीय संगीत के अनुकूल परिवर्द्धित कर ‘सरोद’ नामकरण किया। मात्र बारह वर्ष की आयु में एकल सरोद-वादन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया था। एक छोटे से बालक की सरोद पर अनूठी लयकारी और तंत्रकारी सुन कर दिग्गज संगीतज्ञ दंग रह गए।
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