'तीन बेर खाती सो वे तीन बैर खाती है', इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
- अनुप्रास अलंकार
- श्लेष अलंकार
- यमक अलंकार
- रूपक अलंकार
उत्तर- [C] यमक अलंकार
तीन बेर खाती थी वो तीन बेर खाती है' - यहाँ पर बेर शब्द दो बार दिया गया है, पर इसका मतलब अलग – अलग है।
यमक अलंकार :-
किसी कविता या काव्य में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और भिन्न-भिन्न स्थानों पर उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहां यमक अलंकार होता है
"तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती हैं"
इस पंक्ति का अर्थ है—वीर शिवाजी महाराज के आतंक से मुगल बादशाहोंं की रानियांँ महान कष्ट में जीवन बिता रही हैं। जो रानियांँ दिन में तीन बार भोजन किया करती थी, वे जंगलों में भटकते हुए मात्र तीन बेर (फल) खाकर ही दिन काट रही हैं।
इस पंक्ति के रचयिता महाकवि भूषण जी हैंं। इन्होंने इस छंद में महाराजा शिवाजी की वीरता का वर्णन किया है।
भूषण जी का यह छंद उनकी आलंकारिक भाषा व चमत्कारिक शैली का अनूठा उदाहरण है। इस संपूर्ण छंद में प्रयुक्त यमक अलंकार की अनुपम शोभा दृष्टव्य है। पूरा छंद देखिए―
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं,
तीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं॥
भूषन शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग,
बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं।
'भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास,
नगन जड़ातीं ते वे नगन जड़ाती हैं॥
इस छंद मेंं यमक अलंकार के अप्रतिम सुंंदर उदाहरण देखिए–
ऊंचे घोर मंदर – अत्यंत ऊंचे महल
ऊंचे घोर मंदर – भयानक ऊंचे पर्वत
कंदमूल – स्वादिष्ट मिष्ठान
कंदमूल – कंदा और जड़ अर्थात जंगली वनस्पतियों की जड़ें
तीन बेर – तीन बार
तीन बेर –तीन बेर अर्थात तीन छोटे फल
भूषण शिथिल – आभूषणों से लदे होने के कारण सुस्त
भूषण शिथिल – भूख के कारण सुस्त
विजन डुलाती – पंखे झुलाती
विजन डुलाती – निर्जन जंगलों में भटकती हैं
नगन जड़ाती – रत्नोंं आभूषणों से सुसज्जित
नगन जड़ाती – नग्न, ठंड में ठिठुरती
हम देखते हैं कि पूरा छंद यमक अलंकार के सुंदर प्रयोगों से सुसज्जित है। इस प्रकार के उदाहरण दुर्लभ हैं।
महाकवि भूषण रीतिकाल के कवि हैं। रीतिकाल में सुंदर श्रृंगारिक रचनाएंँ की गई। किंतु यह भूषण की ही विशेषता है कि उन्होंने लीक से हटकर लिखा है। एक रीतिकालीन कवि होते हुए भी उन्होंने ओज और वीररस की अनूँँठी रचनाएंँ रची।
महाकवि भूषण जैसे श्रेष्ठ कवियों की रचनाओं के कारण आज हिंदी काव्य जगत धन्य है।
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