"चारु चन्द्र की चंचल किरणे, खेल रही थी जल-थल में" ,इस काव्य में कौन सा अलंकार है ?
- यमक अलंकार
- उपमा अलंकार
- अनुप्रास अलंकार
- रुपक अलंकार
उत्तर- अनुप्रास अलंकार
भगवान श्रीराम, पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पर जा चुके हैं। वहां वह पंचवटी में पर्णकुटी अर्थात् पत्तों की कुटिया बनाकर रहने लगते हैं। एक रात्रि राम व सीता विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मण बाहर कुटी का पहरा दे रहे हैं। इस दृश्य को कवि मैथिली शरण गुप्त अपने काव्य-ग्रंथ 'पंचवटी' में यूं लिखते हैं कि चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से (सुंदर चंद्रमा की चंचल किरणें जल और थल सभी स्थानों पर क्रीड़ा कर रही हैं। पृथ्वी से आकाश तक सभी जगह चंद्रमा की स्वच्छ चाँदनी फैली हुई है जिसे देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि धरती और आकाश में कोई धुली हुई सफेद चादर बिछी हुई हो। पृथ्वी हरे घास के तिनकों की नोंक के माध्यम से अपनी प्रसन्नता को व्यक्त कर रही है। मंद सुगंधित वायु बह रही है, जिसके कारण वृक्ष धीरे-धीरे हिल रहे हैं)
अनुप्रास अलंकार :- अनुप्रास शब्द ‘अनु+प्रास’ इन 2 शब्दों से मिलकर बनता है। यहाँ पर ‘अनु’ शब्द का अर्थ ‘बार-बार‘ तथा ‘प्रास’ शब्द का अर्थ ‘वर्ण‘ होता है। जब किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने पर जो चमत्कार होता है, उसे ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते है।
'चरर मरर खुल गए अरर रवस्फुटो से' में अनुप्रास अलंकार है।
अलंकरोति इति अलंकार-जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है। जहाँ एक शब्द या वर्ण बार-बार आता है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। अनुप्रास का अर्थ है दोहराना। जहाँ कारण उत्पन्न होता है अर्थात काव्य में जहाँ एक ही अक्षर की आवृत्ति बार-बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे- रघुपति राघव राजा राम। (र अक्षर की आवृत्ति)।
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