'चरण कमल बंदौ रघुराई' ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है ? (charan kamal bandau raghuraee ,is pankti mein kaun sa alankaar hai?) - www.studyandupdates.com

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'चरण कमल बंदौ रघुराई' ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है ? (charan kamal bandau raghuraee ,is pankti mein kaun sa alankaar hai?)

'चरण कमल बंदौ रघुराई' ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

  1. श्लेष अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. अतदगुण अलंकार
  4. भ्रांतिमान अलंकार

उत्तर- रूपक अलंकार


चरन कमल बंदौ हरि राई। जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥ बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥



भावार्थ :-- जिस पर श्रीहरि की कृपा हो जाती है, उसके लिए असंभव भी संभव हो जाता है। लूला-लंगड़ा मनुष्य पर्वत को भी लांघ जाता है। अंधे को गुप्त और प्रकट सबकुछ देखने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। बहरा सुनने लगता है। गूंगा बोलने लगता है कंगाल राज-छत्र धारण कर लेता हे। ऐसे करूणामय प्रभु की पद-वन्दना कौन अभागा न करेगा। शब्दार्थ :-राई= राजा। पंगु = लंगड़ा। लघै =लांघ जाता है, पार कर जाता है। मूक =गूंगा। रंक =निर्धन, गरीब, कंगाल। छत्र धराई = राज-छत्र धारण करके। तेहि = तिनके। पाई =चरण।







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