'ज्यो-ज्यो बूढ़े स्याम रंग त्यों त्यों उज्जवल होय' , इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है一
- विरोधाभास अलंकार
- यमक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- रूपक अलंकार
उत्तर- विरोधाभास अलंकार
विरोधाभास अलंकार - 'विरोधाभास' शब्द 'विरोध + आभास' के योग से बना है, अर्थात जब किसी पद में वास्तविकता में तो विरोध वाली कोई बात नहीं होती है, परन्तु सामान्य बुद्धि से विचार करने पर वहाँ कोई भी पाठक विरोध कर सकता है तो वहाँ विरोधाभास अलंकार माना जाता है।
जब किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बाधा चढ़ा कर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार में नामुमकिन तथ्य बोले जाते हैं।
जहां पर कारण के होने पर भी कार्य न हो वहां विशेषोक्ति अलंकार होता है।
जब समानता होने के कारण उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना की जाए या संभावना हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में-मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि आता है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
अलंकार चन्द्रोदय के अनुसार विरोधाभास अलंकार, हिन्दी कविता में प्रयुक्त एक अलंकार का भेद है। विरोधाभास अलंकार के अंतर्गत एक ही वाक्य में आपस में कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के तौर पर :
1. "मोहब्बत एक मीठा ज़हर है" इस वाक्य में ज़हर को मीठा बताया गया है जबकि ये ज्ञातव्य है कि ज़हर मीठा नहीं होता। अतः, यहाँ पर विरोधाभास अलंकार की आवृति है। 2. या अनुरागी चित्त की समुझै नहिं कोय। ज्यों-ज्यों बूडै़ स्याम रंग त्यों-त्यों उज्जवल होय।।
इसे विरोधीलंकार भी कहा जाता है, जिसका शब्दकोशीय अर्थ 'एक वक्तव्य, जिसमें विरोधाभाषी या विरोधी विचारों को मिलाया गया हो, जैसा कि गर्जनापूर्ण शांति या मीठा दुख' होता है।
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