"मैया मैं तो चन्द्र, खिलौना लैहो" ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है ?
- अतदगुण अलंकार
- रूपक अलंकार
- श्लेष अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
उत्तर- रूपक अलंकार
कविता
मैया, मैं तो चंद-खिलौना लैहौं। जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥ सुरी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं। ह्वैहौं पूत नंद बाबा कौ, तेरौ सुत न कहैहौं॥ आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं। हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥ तेरी सौं, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं। सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
व्याख्या :-
श्री कृष्ण कह रहे हैं, “मैया! मैं तो यह चंद्रमा-खिलौना लूँगा। यदि तू इसे नहीं देगी तो अभी ज़मीन पर लोट जाऊँगा, तेरी गोद में नहीं आऊँगा। न तो गैया का दूध पीऊँगा, न सिर में चुटियाँ गुँथवाऊँगा। मैं अपने नंद बाबा का पुत्र बनूँगा, तेरा बेटा नहीं कहलाऊँगा।” तब मैया यशोदा हँसती हुई समझाती हैं और कहती हैं “आगे आओ! मेरी बात सुनो, यह बात तुम्हारे दाऊ भैया को मैं नहीं बताऊँगी। तुम्हें मैं नई दुल्हनिया लाकर दूँगी।” यह सुनकर कृष्ण कहने लगे “तू मेरी मैया है, तेरी शपथ, सुन! मैं इसी समय ब्याह करने जाऊँगा।” सूरदास जी कहते हैं प्रभु! मैं आपका कुटिल बाराती बनूँगा और आपके विवाह में मंगल के सुंदर गीत गाऊँगा।
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