भजन 'पायो जी मैंने राम रतन धन पायो' , इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
- भ्रांतिमान अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- रूपक अलंकार
उत्तर- रूपक अलंकार
भजन
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु । कृपा कर अपनायो ॥ पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । जन्म जन्म की पूंजी पाई । जग में सबी खुमायो ॥ पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । खर्च ना खूटे, चोर ना लूटे। दिन दिन बढ़त सवायो॥ पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । सत की नाव खेवटिया सतगुरु। भवसागर तरवयो॥ पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । मीरा के प्रभु गिरिधर नगर। हर्ष हर्ष जस गायो॥ पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ।
व्याख्या :- इस पद / दोहे में कृष्ण की दीवानी मीरा बाई कहती हैं कि मुझे राम रूपी बड़े धन की प्राप्ति हुई है। मेरे सद्गुरु ने मुझपर कृपा करके ऐसी अमूल्य वस्तु भेट की हैं, उसे मैंने पूरे मन से अपना लिया हैं। उसे पाकर मुझे लगा मुझे ऐसी वस्तु प्राप्त हो गईं हैं, जिसका जन्म-जन्मान्तर से इन्तजार था। अनेक जन्मो में मुझे जो कुछ मिलता रहा हैं बस उनमे से यही नाम मूल्यवान प्रतीत होता हैं। जब से यह नाम मुझे प्राप्त हुआ है मेरे लिए दुनियां की अन्य चीज़े खो गई हैं। इस नाम रूपी धन की यह विशेषता हैं कि यह खर्च करने पर कभी घटता नही हैं, न ही इसे कोई चुरा सकता हैं, यह दिन पर दिन बढता जाता हैं। यह ऐसा धन हैं जो मोक्ष का मार्ग दिखता हैं। इस नाम को अर्थात श्री कृष्ण को पाकर मीरा ने ख़ुशी – ख़ुशी से उनका गुणगान किया है।
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