'संदेसनि मधुबन कूप भरे में' , इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है 一
- रूपक अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
- अतिश्योक्ति अलंकार
उत्तर- अतिश्योक्ति अलंकार
अतिश्योक्ति अलंकार :- जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। अर्थात जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं।
कविता
संदेसनि मधुबन-कूप भरे। जो कोउ पथिक गए हँ ह्याँ ते फिरि नहिं अवन करे॥ कै वै स्याम सिखाय समोधे कै वै बीच मरे? अपने नहिं पठवत नंदनंदन हमरेउ फेरि धरे॥ मसि खूँटी कागद जल भींजे, सर दव लागि जरे। पाती लिखैं कहो क्यों करि जो पलक-कपाट अरे?
व्याख्या :-
एक गोपी कहती है कि हे सखि, श्रीकृष्ण के पास इतने संदेश भेजे गए, शायद इन संदेशों से मथुरा के कुएँ भी भर गए होंगे! जो भी संदेशवाहक पथिक यहाँ से संदेशा लेकर गए हैं, उन्होंने पुनः यहाँ तक आने का कष्ट नहीं किया। या तो श्रीकृष्ण ने उन्हें समझा-बुझा दिया कि वहाँ अब मत जाना या मथुरा पहुँचने के पूर्व ही संदेशवाहक बीच में मर गए। कृष्ण की ज़रा धृष्टता तो देखो, वे अपना संदेश तो भेजते नहीं, पुनः हमारे संदेश भी रख लेते हैं। संदेश न आने का एक कारण यह भी हो सकता है कि मथुरा में स्याही ही समाप्त हो गई, सारे काग़ज़ जल में भीज कर सड़ गए और सरकंडे में आग लग गई और वे जल कर राख हो गए। अतः बिना स्याही, काग़ज़ और सरकंडा की क़लम के पत्र कैसे लिखा जाए! जिनकी आँखों पर पलक रूपी कपाट पड़े रहते हैं, जो हमारी ओर देखना ही नहीं चाहते, वे कैसे पत्र लिखकर संदेश भिजवाएँ!
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