'सन्देसनि मधुबन-कूप भरे' में कौन-सा अलंकार हैं?
(A) उपमा
(B) अतिश्योक्ति
(C) अनुप्रास
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- अतिश्योक्ति
संदेसनि मधुवन-कूप भरे उपरोक्त पंक्ति में अतिशयोक्ति अलंकार है, क्योंकि यहां पर किसी बात का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतिशयोक्ति अलंकार वहां पर होता है, जब किसी काव्य में किसी वस्तु, घटना, व्यक्ति, आदि के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए। वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। ऊपर की पंक्ति में एक गोपी अपनी सखी से कह रही है कि हमारे संदेशों से मथुरा के कुयें भर गए अर्थात उसने अपने संदेशों के संबंध में बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है इस कारण यहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होगा। यह पंक्ति सूरदास द्वारा रचित विरह पदावली से उद्धृत की गई पंक्ति है।
संदेसनि मधुबन-कूप भरे।
जो कोउ पथिक गए हँ ह्याँ ते फिरि नहिं अवन करे॥
कै वै स्याम सिखाय समोधे कै वै बीच मरे?
अपने नहिं पठवत नंदनंदन हमरेउ फेरि धरे॥
मसि खूँटी कागद जल भींजे, सर दव लागि जरे।
पाती लिखैं कहो क्यों करि जो पलक-कपाट अरे ?
भावार्थ-
एक गोपी कहती है कि हे सखि, श्रीकृष्ण के पास इतने संदेश भेजे गए, शायद इन संदेशों से मथुरा के कुएँ भी भर गए होंगे! जो भी संदेशवाहक पथिक यहाँ से संदेशा लेकर गए हैं, उन्होंने पुनः यहाँ तक आने का कष्ट नहीं किया। या तो श्रीकृष्ण ने उन्हें समझा-बुझा दिया कि वहाँ अब मत जाना या मथुरा पहुँचने के पूर्व ही संदेशवाहक बीच में मर गए। कृष्ण की ज़रा धृष्टता तो देखो, वे अपना संदेश तो भेजते नहीं, पुनः हमारे संदेश भी रख लेते हैं। संदेश न आने का एक कारण यह भी हो सकता है कि मथुरा में स्याही ही समाप्त हो गई, सारे काग़ज़ जल में भीज कर सड़ गए और सरकंडे में आग लग गई और वे जल कर राख हो गए। अतः बिना स्याही, काग़ज़ और सरकंडा की क़लम के पत्र कैसे लिखा जाए! जिनकी आँखों पर पलक रूपी कपाट पड़े रहते हैं, जो हमारी ओर देखना ही नहीं चाहते, वे कैसे पत्र लिखकर संदेश भिजवाएँ!
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