'सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं' , इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है 一
- रूपक अलंकार
- अनुप्रास अलंकार
- अतिश्योक्ति अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्तर- अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार :- जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं। अनुप्रास अलंकार के कारण वाक्य की सुंदरता में बढ़ावा होता हैं।
पंक्ति सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसह जाहि निरंतर गावे ।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड छेद अभेद सुबेद बतायें ॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पायें।
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरे छाछ पे नाच नचावै ॥
- जिनके गुणों का गान स्वयं शेषनाग, विद्यासागर गणेमा शिव सूर्य एवं इंद्र निरंतर ही गाते रहते हैं। जिन्हें वेद अनादि (जिसका न कोई आदि है, न अंत), अनंत अखंड (जिस प्रकृति के त्रिगुणमय तत्वों में विभाजित नहीं किया जा सकता) अछेद (जो गणों से है) अभेद (जो समदर्शी है। बताते हैं। नारद से सुकदेव तक जिनके अदभुत गुणों की व्याख्या करते हुए हार गए, लेकिन जिसका पार नहीं पा सके अर्थात उनके सम्पूर्ण गुणों का ज्ञान नहीं कर सके उन्हीं अनादि, अनंत, अभेद अखंड परमेश्वर को प्रेम से वशीभूत कर यादवों की लड़कियाँ एक कटोरा छाछ पर नचा रही है।
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