"सो सुख सुजस सुलब मोहि स्वामी" ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- रुपक अलंकार
- अनुप्रास अलंकार
- व्यतिरेक अलंकार
उत्तर- अनुप्रास अलंकार
चौपाई
सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी। सब सिधि तव दरसन अनुगामी॥
कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई। फिरे महीसु आसिषा पाई॥
भावार्थ-
हे स्वामी! वही सुख और सुयश मुझे सुलभ हो गया; सारी सिद्धियाँ आपके दर्शनों की अनुगामिनी अर्थात पीछे-पीछे चलनेवाली हैं। इस प्रकार बार-बार विनती की और सिर नवाकर तथा उनसे आशीर्वाद पाकर राजा जनक लौटे।
अनुप्रास अलंकार :- अनुप्रास शब्द ‘अनु+प्रास’ इन 2 शब्दों से मिलकर बनता है। यहाँ पर ‘अनु’ शब्द का अर्थ ‘बार-बार‘ तथा ‘प्रास’ शब्द का अर्थ ‘वर्ण‘ होता है। जब किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने पर जो चमत्कार होता है, उसे ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते है।
'चरर मरर खुल गए अरर रवस्फुटो से' में अनुप्रास अलंकार है।
अलंकरोति इति अलंकार-जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है। जहाँ एक शब्द या वर्ण बार-बार आता है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। अनुप्रास का अर्थ है दोहराना। जहाँ कारण उत्पन्न होता है अर्थात काव्य में जहाँ एक ही अक्षर की आवृत्ति बार-बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे- रघुपति राघव राजा राम। (र अक्षर की आवृत्ति)।
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