"सो सुख सुजस सुलब मोहि स्वामी" ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है ? ("so sukh sujas sulab mohi svaamee" ,is pankti mein kaun sa alankaar hai ?) - www.studyandupdates.com

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"सो सुख सुजस सुलब मोहि स्वामी" ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है ? ("so sukh sujas sulab mohi svaamee" ,is pankti mein kaun sa alankaar hai ?)

"सो सुख सुजस सुलब मोहि स्वामी" ,इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

  1. उत्प्रेक्षा अलंकार
  2. रुपक अलंकार
  3. अनुप्रास अलंकार
  4. व्यतिरेक अलंकार

उत्तर- अनुप्रास अलंकार



चौपाई

सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी। सब सिधि तव दरसन अनुगामी॥ कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई। फिरे महीसु आसिषा पाई॥

भावार्थ-

हे स्वामी! वही सुख और सुयश मुझे सुलभ हो गया; सारी सिद्धियाँ आपके दर्शनों की अनुगामिनी अर्थात पीछे-पीछे चलनेवाली हैं। इस प्रकार बार-बार विनती की और सिर नवाकर तथा उनसे आशीर्वाद पाकर राजा जनक लौटे।



अनुप्रास अलंकार :- अनुप्रास शब्द ‘अनु+प्रास’ इन 2 शब्दों से मिलकर बनता है। यहाँ पर ‘अनु’ शब्द का अर्थ ‘बार-बार‘ तथा ‘प्रास’ शब्द का अर्थ ‘वर्ण‘ होता है। जब किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने पर जो चमत्कार होता है, उसे ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते है।


'चरर मरर खुल गए अरर रवस्फुटो से' में अनुप्रास अलंकार है।

अलंकरोति इति अलंकार-जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है। जहाँ एक शब्द या वर्ण बार-बार आता है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। अनुप्रास का अर्थ है दोहराना। जहाँ कारण उत्पन्न होता है अर्थात काव्य में जहाँ एक ही अक्षर की आवृत्ति बार-बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। 


जैसे- रघुपति राघव राजा राम। (र अक्षर की आवृत्ति)।






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