- उपमा
- रूपक
- उत्प्रेक्षा
- भ्रान्तिमान
उत्तर- रूपक अलंकार
पद्य
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बालपतंग ।
बिकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग ।।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य - पुस्तक हिन्दी के काव्य - खंड के धनुष - भंग शीर्षक से अवतरित है। जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। उक्त पंक्तियां इनके द्वारा लिखी श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड से संकलित है।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश में धनुष - भंग के लिए बने हुए मंच पर श्रीरामचन्द्र जी के चढ़ने का वर्णन किया है।
व्याख्या -
प्रस्तुत पद्यांश में तुलसीदास जी कहते हैं कि उदयांचल पर्वत के समान बने हुए विशाल मंच पर श्रीरामचन्द्र जी के रूप में बाल सूर्य के उदित होते ही सभी संत रूपी कमल खिल उठे हैं और नेत्ररूपी भंवरे हर्षित हो उठे हैं। भाव यह है कि मंच पर रामचंद्र जी के चढ़ते ही महफ़िल में बैठे सभी सज्जन व्यक्ति अत्यधिक प्रसन्न हो जाते हैं।
रूपक अलंकार - रूपक अलंकार एक प्रकार का अर्थालंकार है जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है।
इसके सांग रूपक, अभेद रुपक, तद्रूप रूपक, न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं।
उदाहरण-
1- चरन कमल बन्दउँ हरिराई
2- संतौ भाई आई ज्ञान की आंधी रे।
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