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Who was the first Tirthankara of Jainism / जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर कौन थे?

Who was the first Tirthankara of Jainism / जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर कौन थे?

(a) Mahavira Swami / महावीर स्वामी
(b) Ajitnath / अजितनाथ
(c) Rishabhadeva / ऋषभदेव
(d) Parshwanath / पार्श्वनाथ

SSC JE Civil – 27/01/2018 (Shift-II)

Answer / उत्तर :-

(c) Rishabhadeva / ऋषभदेव

Explanation / व्याख्या :- 

There are 24 Tirthankaras in Jainism. The first among them was Risabhdeva and the 24th and the last tirthankar was Mahavir Swami. The tirthankara was the tittle of its founder and Jitendriya and enlightened Mahatmas in Jainism. Mahavir is believed to be the real founder of Jainism. The historicity of the preceding Tirthankaras is doubtful except for the 23rd Tirthankara Parshvanath. The period of Parshvanath is considered as 250 BCE before Mahavir Swami. His followers are called as Nirgranth. Jainism believes in rebirth and Karmwad (Karmism). According to him Karma is the cause of birth and death. In Jainism ‘Sanlekhna’ means to sacrifice the body by fasting.

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हैं। उनमें से पहले ऋषभदेव थे और 24वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी थे। तीर्थंकर इसके संस्थापक और जैन धर्म में जितेंद्रिय और प्रबुद्ध महात्माओं की उपाधि थे। महावीर को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को छोड़कर पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता संदिग्ध है। पार्श्वनाथ का काल महावीर स्वामी से 250 ईसा पूर्व माना जाता है। उनके अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता है। जैन धर्म पुनर्जन्म और कर्मवाद में विश्वास करता है। उनके अनुसार कर्म ही जन्म और मृत्यु का कारण है। जैन धर्म में ‘संलेखना’ का अर्थ है उपवास करके शरीर का त्याग करना।

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