"सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।" का भावार्थ होगा ("sir mukut kundal tilak charu udaru ang vibhushanam." ka bhavarth hoga.) - - www.studyandupdates.com

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"सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।" का भावार्थ होगा ("sir mukut kundal tilak charu udaru ang vibhushanam." ka bhavarth hoga.) -

 राम स्तुति , Raam stuti





सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्। आजानुभुज शर चाप धर, संग्रामजित खरदूषणम्॥

sir mukut kundal tilak charu udaru ang vibhushanam.

aajanubhuj shar chap dhar, sangramajit kharadushanam॥




भावार्थ : जिनके मस्तक पर रत्नजटित मुकुट, कानों में कुण्डल, भाल पर सुंदर तिलक और प्रत्येक अंग में सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं, जिनकी भुजाएं घुटनों तक लम्बी हैं, जो धनुष-बाण लिए हुए हैं, जिन्होंने संग्राम में खर और दूषण को भी जीत लिया है...



- इसमें अनुप्रास अलंकार का प्रयोग बेहद खूबसूरती के साथ किया गया है















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